तर्ज़ -'वो दिल कहाँ से लाऊँ, तेरी याद जो भुलादे' इस

तर्ज़ -'वो दिल कहाँ से लाऊँ, तेरी याद जो भुलादे' इस








तर्ज़ -'वो दिल कहाँ से लाऊँ, तेरी याद जो भुलादे' 





इस योग्य हम कहाँ है, भगवन तुम्हें मनायें,
फिर भी मना रहे हैं, शायद तूं मान जाये ।




जब से जनम लिया है, विषयों ने हमको घेरा,
ईर्ष्या-वासना ने, डाला है तन में डेरा,
सद्बुद्धि को अहम ने, हरदम रखा दबाये ||1||





जग में जहाँ भी देखा, बस एक ही चलन है,
एक-दूसरे के सुख से, खुद को बड़ी जलन है,
कर्मों का लेखा-जोखा, कोई समझ ना पाये ||2||





अब कुछ ना कर सके तो, तेरी शरण में आये,
अपराध मानते हैं, झेलेंगे सब सजायें,
बस दर्श तूं दिखादे, कुछ और हम ना चाहें ||3||





निश्चय ही हम पतित हैं, लोभी हैं स्वार्थी हैं,
तेरा नाम जब पुकारें, माया पुकारती है,
सुख भोगने की इच्छा, कभी तृप्त हो ना पाये ||4||








जै श्री राधे कृष्ण

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श्री कृष्णायसमर्पणं



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