हरि मैं तो लाख यतन कर हारी।

हरि मैं तो लाख यतन कर हारी।





हरि मैं तो लाख यतन कर हारी।
महलन ढूंढा, गिरिबन ढूंढा, ढूंढी दुनिया सारी॥

गोलुक कुंज गली में ढूंढा, ढूंढा वृन्दावन में।
डाल डाल से, फूल पात से, जा पूछा कुंजन में।
बीती की सब कहे हरि ना अब की कहे बनवारी॥1||

कोई कहे श्री राम है क्या या गौरी काली मैया।
मैं कहू नहीं गोपाल हैं वो एक बन में चरावे गैया॥2||

उमापति परमेश्वर नहीं, ना नारायण भयहारी।
मीरा का हृदय विहारी, मीरा का हृदय विहारी॥3||

अंग पीताम्बर मोरे मुकुट, सर माला गले सुहावे।
बहुरूपी बड़े रूप धरे, जिस नाम बुलावो आवे॥
मीरा कहे अब लाज रखो प्रभु आवो मुरली धारी॥4||


''जय श्री राधे कृष्णा ''


post written by:

Related Posts

  • लडू गोपाल जी की भक्ति का फल एक समय की बात है दो बुडी औरते पड़ोस में रहती थी , उनमे से एक लडू गोपाल के सेवा करते एवम एक जैन धर्म…
  • वह विचित्र गांव एक व्यक्ति एक गांव में गया। वहां की श्मशान भूमि से जब वह गुजरा तो उसने एक विचित्र बात देखी। वहां पत…
  • सत्कार और तिरस्कार एक थका माँदा शिल्पकार लंबी यात्रा के बाद किसी छायादार वृक्ष के नीचे विश्राम के लिये बैठ गया। अचानक…
  • गरीबी का दर्दएक गरीब परिवार था जिसमे 5 लोग थे. माँ बाप और 3 बच्चे ! बाप हमेशा बीमार रहता था | एक दिन वो मर गया …

0 Comments: