
``तर्ज़-धीरे धीरे बोल कोई सुन ना ले``
कुलदेवी का दरश करो, दरश करो भई दरश करो
चाव करो मन हरख भरो, हरख भरो भई हरख भरो
मईया जी घर आई है, महर घणी बरसाई है
भोत दिनाँ सै बाट उडीक रहया
हैलो दे दे रोज बुलाय रहया
सूरज उग्यो, चँदो दिख्यो
आज घड़ी बा आई है, माँ सिँह पै चढ़कै आई है ||1||
कितनो सुन्दर लाग रहयो दरबार
कितनो मन मोहक प्यारो सिणगार
देख्याँ सरै, जी ना भरै
ऐसो रूप सजाई है, नैणां माँय समाई है ||2||
आज म्हारो घर आँगण धन्य भयो
*"रवि"* कहवै इमरत सो बरस रहयो
गावो भजन, होकर मगन
गैहरी खुशियाँ छाई है, मईया दरश दिखाई है ||3||
*रविन्द्र केजरीवाल " रवि " कोलकाता*
जय श्री राधे कृष्ण
श्री कृष्णाय समर्पणम्
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